( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )
धनपर करते हैं चैना ,
गया धन फेर खुले नैना ।
बापवडाने माल कमाया ,
दिखता आँखों माँही ।
सटर - पटरमें पैसा खोया ,
आखिर तुंबडी आई || १ ||
दया धरम तो कुछ नहीं कीन्हा ,
लोभ चढा मनमाना ।
रोने लागे चोर लुटे जब ,
सुन्न पडेगा गाना ॥२ ॥
साधुसंतकी कीन्ही निंदा ,
धनकीऽहंकारीमें ।
लगे सभी अंगार धनोंको ,
पडता है जारीमें ॥ ३ ॥
कहता तुकड्या पछताओगे ,
धन जानेपर सारा ।
कोई नही पूछेगा फिरके ,
साधो अबसे यारा ! ॥४ ॥
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